Ekadashi Vrat Katha एकादशी व्रत की कथा। ग्यारस माता की कथा | Gyaras Mata Ki Katha

Ekadashi Vrat Katha : जो भी व्यक्ति शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी के व्रत का पालन कर द्वादशी के दिन अन्य ग्रहण करता है ऐसे व्यक्ति से स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अति प्रसन्न होते हैं भगवान की प्रेम में भक्ति प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय है एकादशी के व्रत का पालन करना

हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को मनाई जाती है इस प्रकार हर महीने दो बार एकादशी की तिथि आती है एकादशी के दिन अन्य से व्रत रखकर भगवान विष्णु की आराधना करने का विधान है एकादशी के व्रत का मुख्य उद्देश्य है कि अपने मां के साथ-साथ अपनी सारी इंद्रियों को भगवान श्री कृष्ण की सेवा में लगाना

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Ekadashi Vrat Katha । एकादशी व्रत की कथा एवं महात्म।
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Category Religion & Spirituality

Ekadashi Vrat Katha । एकादशी व्रत की कथा एवं महात्म।

Ekadashi Vrat Katha । एकादशी व्रत की कथा (प्रथम कथा)

Ekadashi Vrat Katha यह एक ऐसा दिन है जब हमें अपने शारीरिक आवश्यकताओं को कम से कम रखकर अपनी साधना के प्रति अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए जैसे की हरी नाम का जाप और कीर्तन करना शास्त्रों का अध्ययन करना वैष्णवन की सेवा करनाआदिश्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पवित्र पानी या पवित्रा एकादशी का महत्व भविष्य उत्तर पुराण में महाराज युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं

Ekadashi Vrat Katha कुछ इस प्रकार है प्राचीन काल में माही चित्र नामक एक राजा था जो माहिष्मती पूरी पर राज्य करता था वह एक निष्ठावान राजा था जो अपनी प्रजा का अपने परिवार जैसा ध्यान रखता था और हमेशा धर्म के पथ पर चलता था ना उन्होंने कभी कोई पाप कर्म किया न छल कपट से कभी धन की प्राप्ति की विदुराचार्यों को व्यापक दंड देते थे और सत्यवादी लोगों को अपने अच्छे कर्मों के लिए पुरस्कृत करते थे

Ekadashi Vrat Katha

लेकिन फिर भी दुर्भाग्य वर्ष उनकी कोई संतान नहीं थी एक बार सभी ब्राह्मणों ने इकट्ठा होकर इस पर विचार विमर्श किया कि राजा की इस पीड़ा का सुचारू रूप से कैसे निवारण ढूंढा जाए उन्होंने ऋषि मुनियों को इसका कारण पूछने का निर्णय लियावन में भ्रमण करते हुए वह लोमश ऋषि के पास पहुंचे

जो सभी शास्त्रों के ज्ञात आते थे लोमश ऋषि को देखकर राजा के सलाहकारों ने उन्हें आदर पूर्वक प्रणाम किया और उन्हें सारा वृतांत सुनाते हुए उनसे विनती की कि वे उन्हें कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे राजा माही चित्र को संतान प्राप्ति हो सके लोमश ऋषि जो की तरीका लग गए थे वह उनसे कहने लगे यह राजा पिछले जन्म में व्यापार के लिए एक गांव से दूसरे गांव भटकते थे

 एक बार व्यावसायिक काम के लिए घूमते हुए वह प्यार से व्याकुल होकर एक तालाब के पास आए जब भी पानी पीने के इरादे से तालाब के किनारे पर पहुंचे इस समय बछड़े को जन्म दी हुई एक गाय भी तालाब से पानी पी रही थी तब प्यास से अस्त व्यस्त होकर उन्होंने उसे गए और उसके बछड़े को दूर कर दिया और स्वयं पानी पीने लगे लोमश ऋषि ने बताया कि क्योंकि राजा से यह पाप हुआ था

 इसलिए उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो रही है जब सलाहकारों ने मुनिवर से पूछा कि किस प्रकार राजा इस बात से मुक्त हो सकते हैं तो उन्होंने श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पवित्रा एकादशी के व्रत का पालन करने का सुझाव दिया कुछ ही समय में यह मंगलमय तिथि आ गई और राजा सहित सभी ने इसका निष्ठा पूर्वक पालन किया द्वादशी के दिन सभी ने व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ पुण्य राजा को अर्पित किया

 देखते ही देखते राजा माही चित्र को एक तेजस्वी संतान की प्राप्ति हुईभगवान श्री कृष्णा युधिष्ठिर महाराज को बताते हैं कि जो कोई भी इस व्रत का पालन करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर सुख की प्राप्ति करता है जो कोई इस व्रत का महत्व श्रद्धापूर्वक श्रवण करता है उसे निसंदेह भगवत प्राप्ति होती है

 इस पवित्र एकादशी के शुभ अवसर का पूरी तरह से लाभ उठाएं भगवान के नाम का निष्ठा पूर्वक जाप करें और भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने का पूरा प्रयास करें पवित्रा एकादशी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं धन्यवाद हरे कृष्णा

Ekadashi Vrat Katha । एकादशी व्रत की कथा (द्वितीय कथा)

Ekadashi Vrat Katha प्रस्तावना

एकादशी देवी सब पुण्य से अधिक है यह सर्वदा मोक्ष देने वाली है जो मनुष्य भी एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है उनके जन्मों जन्मों के पापों का नाश हो जाता है बंधुओ जो मनुष्य एकादशी का व्रत नहीं करते हैं वह भी यदि एकादशी की इस कहानी को (Ekadashi Vrat Katha) सुनते हैं तो उनके जन्म-जानमन के पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें भी मोक्ष की प्राप्ति होती है

Ekadashi Vrat Katha । एकादशी व्रत की कथा (द्वितीय कथा)

एक राजा के दो बेटियां थी छोटी बेटी एकादशी का व्रत किया करती थी हर कोई छोटी बेटी की प्रशंसा किया करता था और बड़ी बहन छोटी बहन से इशा करती थी एक बार पड़ोसी राजा का बेटा बड़े बेटी को देखने आया लेकिन उसे बड़ी बेटी की जगह छोटी बेटी पसंद आ गई राजा की छोटी बेटी अब बड़ी बहन छोटी बहन से और बिछड़ते लगती है वह छोटी बहन को मारने  के नए-नए तरीके अपनाते रहती है

 एक बार वह लड्डू में जहर मिलाकर उसे खिलाने की कोशिश करती है और एक बार वह मटके में जहरीला सांप रखकर छोटी बहन के कमरे में रख देती है एक बार छोटी बहन को पनघट पर पानी भरने के लिए ले जाती है और धोखे से कुएं में धक्का दे देती है पर हर बार ग्यारस माता उसे बचा लेती है

 क्योंकि वह ग्यारस माता के व्रत( Ekadashi Vrat ) किया करती थी बड़ी बहन बहुत परेशान हो गई कि यह तो किसी भी तरह नहीं मरती तब एक दिन बड़ी बहन छोटी बहन से बोली मेरी प्यारी बहन भगवान ने हम सब की मृत्यु किसी न किसी तरह लिखी है क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी मृत्यु कैसे होगी छोटी बहन बहुत सीधी थी वह बोली मेरी मृत्यु मेरे पालतू तोते वह तोते के गले में जो हार है उसमें अटकी हुई है

यदि कोई मेरे तोते को मार कर उसे हार को लेकर पहन ले तो मैं मूर्छित हो जाऊंगी और फिर उसे हार को उतार कर कहींरख दे तो मैं जीवित हो जाऊंगी उसे रात छोटी बहन अपने पिता के पास गई और बोली पिताजी मुझे शक है यदि मैं मर जाऊं तो आप मुझे जलाना नहीं आप मुझे हमारे पुराने महल के कुएं के पास झोपड़ी बनाकर खाट पर सुला देना राजा बोल बेटी तुम ऐसा क्यों बोल रही हो

दो-तीन दिन बाद तो तुम्हारी शादी है तब छोटी बेटी बोली पिताजी समय का कोई भरोसा नहीं इस तरह शादी वाला दिन भी आ गया शादी वाले दिन बड़ी बहन छोटी बहन के पालतू तोते को ढूंढती है पर वह उसे कहीं नहीं मिलता तभी दरवाजे पर बारात आ जाती है वरमाला का कार्य संपन्न हो जाता है शादी  की रस्म शुरू हो जाती है उधर बड़ी बहन तोते को ढूंढ लेती है

और वह उसे तोते को मार देती है वहीं छोटी बहन के साढे तीन फेरे  राजकुमार के साथ पूरे हो जाते हैं तभी छोटी बहन मूर्छित होकर गिर जाती है उधर बड़ी बहन तोते के हार  को खुद पहन लेती है तब छोटी लड़की बेहोश हो जाती है  फेरो में सभी घबरा जाते हैं सभी बारातियों में हलचल मच जाती है की राजकुमारी को क्या हुआ सब डर जाते हैं तब राजा वैध हकीम को बुलाते हैं छोटी राजकुमारी को महल में ले जाकर लिटा दिया जाता है

वह और हकीम राजा से कहते हैं राजकुमारी ना मरी है ना जीवित है हमने ऐसा पहली बार देखा है तब राजा उनसे कहते हैं वहां जाकर बोलना की राजकुमारी बेहोश है अभी थोड़ी देर में ठीक हो जाएगी यदि तुम ऐसा नहीं कहो गे तो मैं तुम्हें फांसी दे दूंगा बेचारे वेद हकीम राजा के कहे अनुसार बोल देते हैं तभी बड़ी बेटी आती है और कहती है पिताजी मुझे छोटी बहन के मरने का बहुत दुख है उससे ज्यादा दुख मुझे आपकी इज्जत का है

 जो कि खराब हो जाएगी आप ऐसा करो कि मेरी शादी राजकुमार के साथ कर दो तब सब ठीक हो जाएगा बड़ी बेटी को पैरों में बिठा दिया पर राजकुमार ने मना कर दिया कहां की है मेरी पत्नी नहीं है मेरी पत्नी जब बोलती है तो उसके मुंह से फूल झड़ते हैं लेकिन सब ने समझा बूझकर उसे 3:30 फेयर लगवा दिए बड़ी राजकुमारी ससुराल आई तो राजकुमार ना तो उसे बात करते थे ना उसके हाथ से पानी पीते थे ना ही उसके हाथ का बनाया हुआ खाना खाते थे राजकुमार ने मन ही मन सोचा मैं पता लगा कर रहूंगा कि मेरी पत्नी के साथ क्या हुआ

एक दिन राजकुमार दुखी मन से घोड़े पर बैठकर जा रहे थे कि घोड़ा वहीं जाकर रुक जहां राजकुमारी की अधमरी लाश को रखा गया था राजकुमार ने मन ही मन सोचा कि घोड़ा यहां किस कारण से रुका है कोई तो वजह है जो यहां घोड़ा रख रहा है तब राजकुमार घोड़े से उतरकर पुराने महल में गया  

वहां एक चौकीदार था राजा ने पूछा यह महल किसका है तबचौकीदार ने बताया कि यह महक किसका है तब राजकुमार समझ गए कि यह पुराना महल तो उसके ससुर का ही है वहां खाट पर कौन सो रहा है राजकुमार ने चौकीदार से पूछा तब चौकीदार कहने लगा कि यह राजा की छोटी बेटी है जो शादी वाले दिन अधमरी हो गई थी तब राजकुमार ने कहा कि यह तो मेरी पत्नी है इसके साथ मेरे 3:30 तेरे लिए थे

तब राजकुमार ने चौकीदार से कहा तुम किसी को ना बताना कि मैं यहां आया हूं मैं तुम्हें मुंह मांगी रकम दूंगा चौकीदार ने हां कर दी और राजकुमार खाट के पास गया और बचे हुए 3:30 फिर एक खत के साथ ले लिए राजकुमार उसे दिन वहीं पर रहा और रात को भी वही रहा छोटी रानी रात को खड़ी हो गई

उसने अपने पास अपने पति को देखा तो वह बहुत रोई राजकुमार ने पूछा बड़ी अजीब बात है तुम शादी वाले दिन मूर्छित क्यों हो गई तुम्हारे पिता ने मेरीशादी तुम्हारी बड़ी बहन से क्यों करवा दी जबकि मैंने तुम्हारी बड़ी बहन को स्वीकार भी नहीं किया तब तू मुझे पूरी बात बताओ तुम दिन भर तो मुर्छित थी

अब रात को जीवित कैसे हो गई इसका भी राज बताओ तब राजकुमारी ने अपने पति को तोता और हार  वाली सारी बात बताइए यह भी बताया कि यह बात मैंने अपनी बड़ी बहन को बताई थी एक बार मेरी बड़ी बहन ने मुझे मेरी मृत्यु का उपाय पूछा तब मैंने उसे पूरी बात बताई मेरी बड़ी बहन मुझे बहुत इर्षा करती थी

उसने कई बार मुझे करने की कोशिश की पर ग्यारस माता ने मुझे हर बार बचा लिया यह सब मेरी बड़ी बहन ने किया है तोते के गले में जो हार था वह मेरी बड़ी बहन दिन में पहन लेती है और रात को उतार देती है इसीलिए मैं दिन में मूर्छित रहती हूं और रात को जीवित हो जाती हूं यदि वह हर मुझे वापस मिल जाए

 तो मैं हमेशा के लिए जीवित हो जाऊंगी कोई बहन भी ऐसा कर सकते हैं आप राजकुमार छोटीराजकुमारी के साथ वही दिन बीतने लगे बड़ी रानी ने दाशियो को भेज कर पता लगाना चाहा कि आजकल राजकुमार दिन-रात कहां रहते हैं पर उसे कोई खबर ना लगे उधर छोटी रानी गर्भ से हो गई

एक दिन छोटी रानी ने राजकुमार से कहा मुझे चाहे बेटा हो या बेटी रात में ही हो दिन में तो मैं मूर्छित रहती हूं पर एक दिन राजकुमार को किसी काम से बाहर जाना पड़ा और तभी राजकुमारी प्रसव हो गई तब उसने ग्यारस माता को याद किया तब ग्यारस माता स्वयं आकर उसका प्रसव करवाती है उसके सुंदर पुत्र पैदा होता है

तभी वहां राजकुमार आ जाते हैं उसने भी ग्यारस माता के दर्शन किए Ekadashi माता बोली यह मेरी परम भक्त है और बोली जब तुम्हारा बेटा 5 वर्ष का हो जाए तब तुम इसे अपनी पत्नी का हर लाकर पहना देना देखते ही देखते एक बार 5 वर्ष का हो गया बेटा युवराज 5 वर्ष का हो गया तब राजकुमार अपने बच्चों से कहते हैं कि बेटा युवराज तुम यही रहना मां की खाट के पास में शहर से काम निपटा कर आता हूं

तब बड़ी रानी के दास दासी राजा को वहां से आते हुए देख लेते हैं और बच्चे को उठा लेते हैं बच्चे के दो टुकड़े कर दिए जाते हैं एक टुकड़ा चक्की के नीचे और एक अपने पलंग के नीचे रख लेती है तब वह ग्यारस माता को याद करती है और ग्यारस माता भीख मांगने के लिए बड़ी रानी के महल में आती है तब बड़ी रानी अपने दास दासी के हाथों भिक्षा भिजवा देता है

पर ग्यारस माता कहती है कि मैं तो तुम्हारी रानी के हाथों से ही बढ़ा लूंगी तब वे जाकर उसे कहते हैं तब बड़ी रानी खुद उसे भिक्षा देने के लिए आती है तब ग्यारस माता बिल्ली का रूप बनाकर अंदर जाती है और उसके बच्चे के जो टुकड़े होते हैं उन्हें इकट्ठा जोड़ देता है और उसमें प्राण फूंक देता है और उसे लेकर चली जाती है

राजकुमार कुंवर को लेकर महल में जाते हैं और कहते हैं रानी यह बच्चा मेरी दूर के रिश्ते की बहन का है यदि तुम इसे प्यार से रखोगी तो शायद मेरा दिल भी तुम पर आ जाए तब बड़ी रानी कुंवर को लाड प्यार से रखती है तब एक दिन राजकुमार अपने बेटे से कहता है

कि तुम अपनी मामी से हर मांग लो हम यह हर लेकर तुम्हारी मां के पास चलेंगे पर यह बात अपनी मम्मी को मत बताना कुंवर बोले मानी मानी मुझे अपना ये हार दे दो एक बार तो रानी जवाब दे देती है पर फिर उसे यह बात याद आती है कि जब राजकुमार ने उसे कहा था

कि यदि तुम बच्चे का ध्यान रखोगी तो मेरा दिन तुम पर आ जाएगा तब बड़ी रानी कुंवर को हर दे देती है कुंवर उसे हर को लेकर अपने पिता को देते हैं आज हम आपके हाथ का बना हुआ खाना खाएंगे हम आते हैं तुम खाना तैयार करो बड़ी रानी बहुत खुश हो जाती है कि आज मेरे पति मुझसे खुश है तब राजकुमार छोटी रानी के पास जाते हैं

बड़ी रानी उधर बहुत खुश होती है तब राजकुमार छोटी रानी को वह हाथ पहना देते हैं और छोटी रानी जीवित हो जाती है और महल में छोटी रानी और बच्चे को लेकर आते हैं और बड़ी रानी को अपने ससुर के यहां छोड़ने के लिए चले जाते हैं और उन्हें सारी बात बताते हैं उसके ससुर भी इस बात में शर्मिंदगी महसूस करते हैं और कहते हैं

यह मेरी परवरिश में ही कुछ ना कुछ कमी रही होगी और ग्यारस माता की कृपा से छोटी रानी के भाग जाग जाते हैं है ग्यारस माता जैसे आप छोटी बेटी पर प्रसन्न हुई वैसे सब पर होना कहते सुनते हुंकार भरते सब पर अपनी कृपा बरसाए रखना

 ग्यारस माता की जय

राधे राधे जय श्री कृष्णा 

Ekadashi Vrat Katha एकादशी व्रत की विधि:

  1. संकल्प:
  • एकादशी के दिन, सुबह स्नान करके व्रत की संकल्प करें।
  • उपवास:
  • व्रती दिनभर का उपवास रखें, जिसमें अनाज, दाल, और तेल का त्याग करें।
  • पूजा:
  • भगवान विष्णु की पूजा करें, जैसे कि तुलसी, शंख, चक्र, गदा, और शालिग्राम की मूर्ति को पूजन करें।
  • कथा सुनना:
  • एकादशी कथा को ध्यान से सुनें या पढ़ें।
  • दान:
  • धन या अन्य दान करें, जैसे कि अनाज, वस्त्र, और धन।
  • नींदा व्रत:
  • रात्रि में जागरूक रहें और नींदा व्रत रखें, जिसमें समुद्र नहीं सोना।
  • पूजा का समापन:
  • रात को भगवान की आरती करके पूजा का समापन करें और फिर उपवास तोड़ें।

एकादशी व्रत की यह विधि और कथा व्रती को आत्मिक ऊर्जा, ध्यान, और समर्पण की भावना के साथ भगवान की उपासना करने में मदद करती है।

एकादशी व्रत कथा (Ekadashi Vrat Katha) के लाभ:

  1. आत्मिक उन्नति:
  • एकादशी व्रत कथा का सुनना और व्रत का पालन करना आत्मिक उन्नति में मदद करता है। यह व्रत व्यक्ति को ध्यान में लाने, साधना में मदद करने, और आत्मा के साथ संबंध स्थापित करने में सहायक होता है।
  • पापों का नाश:
  • एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा के माध्यम से पापों को दूर करने में मदद करता है।
  • स्वास्थ्य लाभ:
  • एकादशी व्रत का पालन करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह उपवास शारीरिक शुद्धि को बढ़ाता है और व्यक्ति को स्वस्थ रखता है।
  • धन संबंधी लाभ:
  • एकादशी व्रत का पालन करने से धन की प्राप्ति में वृद्धि होती है। यह व्रत विशेष रूप से धन की वृद्धि और धन का सुरक्षित रहने में मदद करता है।
  • परिवार के साथ समर्पण:
  • एकादशी व्रत का पालन करने से परिवार के सभी सदस्यों को साथ मिलकर भगवान की पूजा करने का अवसर मिलता है। यह साझा करने और समर्पण में वृद्धि करता है।
  • कर्मयोग की भावना:
  • एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति में कर्मयोग की भावना बढ़ती है। यह व्रत व्यक्ति को सकाम और निष्काम कर्म में समर्पित बनाता है।

एकादशी व्रत कथा के पालन से व्यक्ति को आत्मिक, शारीरिक, और धन संबंधी लाभ होता है और वह धार्मिकता, सहिष्णुता, और सामंजस्य के माध्यम से अपने जीवन को समृद्धि से भर देता है।

एकादशी व्रत कथा( Ekadashi Vrat Katha) FAQ

1. एकादशी व्रत क्या है?

एकादशी व्रत हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु की पूजा के रूप में माना जाता है और इसे दो मासिक एकादशी और सोमवती एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

2. एकादशी व्रत के क्या लाभ हैं?

एकादशी व्रत का पालन करने से आत्मिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, पापों का नाश होता है, स्वास्थ्य में सुधार होता है, धन की प्राप्ति में वृद्धि होती है, और परिवार में समर्पण में वृद्धि होती है।

3. एकादशी व्रत कथा ( Ekadashi Vrat Katha) क्या है?

एकादशी व्रत कथा के कई संस्करण हैं, जिनमें से कुछ मुख्य कथाएं हैं, जैसे कि “हरिवल्लभ एकादशी” और “परमा एकादशी”। इनमें से प्रति एकादशी व्रत के लिए विशिष्ट कथा कही जाती है।

4. एकादशी व्रत का पालन कैसे करें?

एकादशी व्रत का पालन के लिए व्यक्ति को स्नान करना, उपवास रखना, भगवान विष्णु की पूजा करना, एकादशी कथा का सुनना या पढ़ना, दान देना और रात्रि को जागरूक रहकर नींदा व्रत का पालन करना होता है।

5. एकादशी व्रत कब कब मनाया जाता है?

एकादशी व्रत पूरे वर्ष के दौरान मनाया जाता है, परंतु कुछ महत्वपूर्ण एकादशी होती हैं जैसे कि “परमा एकादशी” और “निर्जला एकादशी” जो विशेष महत्वपूर्ण होती हैं।

6. एकादशी व्रत के दौरान कौन-कौन से आहार त्यागने चाहिए?

एकादशी व्रत के दिन व्रती को अनाज, दाल, और तेल का त्याग करके उपवास रखना चाहिए। कुछ व्रती नींदा व्रत भी रखते हैं, जिसमें समुद्र नहीं सोते।

7. एकादशी व्रत के बाद क्या किया जाता है?

एकादशी व्रत के बाद, अगले दिन द्वादशी के दिन व्रती को व्रत तोड़ने के लिए प्रात: उगकर नींदा व्रत तोड़ना चाहिए। इसके बाद, भगवान की पूजा करनी चाहिए और दान देना चाहिए।

8. एकादशी व्रत की तय कई प्रकार की होती हैं?

हाँ, एकादशी व्रत की कई प्रकार की होती हैं जैसे कि सर्वादित्य एकादशी, परमा एकादशी, मोहिनी एकादशी, निर्जला एकादशी आदि। हर प्रकार की एकादशी का विशेष महत्व होता है।

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