Som Pradosh Vrat Katha : सोम प्रदोष व्रत कथा हिंदी pdf

इस पोस्ट में हम आपको Som Pradosh Vrat Kathaभी सुनायेंगे और Som Pradosh Vrat Katha के महत्व और प्रदोष व्रत कैसे करे सभी की जानकारी देंगे साथ ही Pradosh Vrat Katha बुक का पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए डायरेक्ट लिंक निचे देंगे जिससे आप Pradosh Vrat Katha बुक आसानी से डाउनलोड करके कभी भी पढ़ सकते है इस किताब में Som Pradosh Vrat Katha, Som Pradosh Vrat पूजन विधि , Som Pradosh Vrat का महत्व और आवश्यक सभी जानकारी एवं आरती भी दी गई है

Som Pradosh Vrat Katha का महत्व:

यदि आप किसी भी प्रकार की आर्थिक परेशानी से घिरे हुए हैं बीमार चल रही हैं या शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने काप्रयास कर रही है तो सोम प्रदोष व्रत जरूर करें इससे सभी संकटों से मुक्ति मिलती है

Som Pradosh Vrat Katha
Name Of PDF Som Pradosh Vrat Katha
Total Page 34
PDF SiZE 1.70 MB
Language Hindi
Pradosh Vrat Katha Download
Category Religion & Spirituality

Som Pradosh Vrat Katha

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहा करती थी उसके पति का स्वर्गवास हो गया था अब इसका सहारा उसका इकलौता पुत्र ही था जिसके साथ वह सुबह से ही भिक्षा मांगने के लिए निकल पड़ती थी इस तरह दिनभर भिक्षा में मिले हुए अन्य से ही वह अपना और अपने पुत्र का पेट पलटी थी एक दिन घर वापस आते समय ब्राह्मणी को एक बालक घायल अवस्था में मिला ब्राह्मणी को उसे पर दया आ गई

और उसे वह अपने घर ले आई वह लड़का विदर्भ देश का राजकुमार था शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर लिया था और उसके पिता को बंदी बनाकर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया था इसलिए वह बालक मरमर फिर रहा था राजकुमार अब ब्राह्मणी और उसके पुत्र के साथ उनके घरमें ही रहने लगा और उसके पुत्र की तरह ही पाल ने और बढ़ने लगा एक दिन वह ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ राजकुमार को लेकर भिक्षा मांगने के लिए गई हुई थी

वहीं पर अंशुमाती नाम की एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उसे पर मोहित हो गई अगले दिन वह अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलवाने के लिए लेकर आई और कुछ दिनों के बाद अंशुमाती के माता-पिता को भगवान शंकर ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमाती का विवाह कर दिया जाए उन्होंने वैसा ही किया

वह विधवा ब्राह्मणी भगवान शिव की परम भक्त थी और Som Pradosh Vrat रखा करती थी उनके प्रदोष व्रत का ही प्रभाव था कि राजकुमार ने गंधर्व राज की सेवा की सहायता से विदर्भ देश से शत्रु को भगा दिया और अपने पिता का खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त कर लिया और सुखपूर्वक जीवन बिताने लगा राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपना मंत्री बना लिया ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के कारण भगवान शंकर की कृपा से जैसे राजकुमार और ब्राह्मणी पुत्र के दिन सुधर गए वैसे ही भगवान शंकर अपने हर भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं

और सब के दिन सवारते हैं इस प्रकार Som Pradosh Vrat रखने से अगले पिछले जन्मों के सभी पापों का नाश हो जाता है और सारी मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाती है निरोगी काया की प्राप्ति होती है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंद्र देव को पाप के कारण क्षय रोग हो गया था इस पाप के निवारण हेतु उन्होंने भगवान शिव की पूजा अर्चना की और सोम प्रदोष व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव का पूजन अर्चन किया ऐसा विश्वास है

कि प्रदोष काल के समय भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और इस समय की गई पूजा पाठ को बहुत जल्दी स्वीकार कर लेते हैं अपने भक्तों की झोलियां खुशियों से भर देते हैं उनके सभी अधूरी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं यही कारण है कि किसी भी प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने का विधान है यह थी सोम प्रदोष व्रत कथा 

Som Pradosh Vrat Katha
Pradosh Vrat Katha

Som Pradosh Vrat Katha की रीति-रिवाज और परंपराएँ:

Som Pradosh Vrat के दिन प्रात काल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर भगवान शिव की विधिवत पूजन करें त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्य से तीन घड़ी पूर्व शिवजी का पूजन करें सामान्य तौर पर सोम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 से 7:00 के बीच की जाती है

पूजा से पहले स्नान करें और शुद्ध सफेद आसन पर बैठकर शिव जी का पूजन करें दिन भर निराहार रहे शिव महिमा स्त्रोत से शिव जी का अभिषेक करें मिष्ठान का नैवेद लगाये  इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म जन्मांतर के फेरों से निकलकर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ता है उसे उत्तम लोगों की प्राप्ति होती है

Som Pradosh Vrat Katha Shivji Ko Prasanna Kare

प्रदोष काल में पूजा करते समय भगवान शिव की कथा आरती शिव रुद्राष्टकम का पाठ जरूर करना चाहिए महामृत्युंजय मंत्र का यथा संभव जाप करना चाहिए तो आज के इस एक ही Artical में आप भगवान शिव की सोम प्रदोष व्रत की कथा पढेंगे  

प्रदोष व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी की तेरस और 13 दिन रखा जाता है इस दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में करने का विधान है जब भी प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ता है तब उसे सोम प्रदोष व्रत रहते हैं 

दांपत्य जीवन सुखद बनाने के लिए संतान सुख प्राप्त करने के लिए और परिवार में सुख समृद्धि की कामना से यह व्रत रखा जाता है व्रत रखने वाले भक्तों को आज के दिन व्रत की कथा अवश्य ही पानया सुन्नी चाहिए कथा सुनते समय अपने हाथ में सफेद पुष्प और अक्षत रखनी चाहिए कथा की समाप्ति के बाद श्रद्धा और विश्वास के साथ यह अक्षत और पुष्प भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर देने चाहिए 

Som Pradosh Vrat Katha क्षमा याचना

नंदी बाबा से प्रार्थना करते समय आप हाथ जोड़कर क्षमा याचना भीकरें नंदी बाबा से प्रार्थना इसलिए की जाती है क्योंकि नंदी बाबा को भगवान शिव का कोतवाल समझा जाता है और हमारी मनोकामनाएं भगवान शिव तक पहुंचाने का सारा काम नंदी बाबा ही करते हैं शुक्र ग्रह का हमारी दांपत्य जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है

यदि शुक्र ग्रह के कारण शुक्र खराब है आपका दंपति जीवन में बहुत कड़वाहटते आ गई हो तो ऐसे में 11ल गुलाब के फूलों को गुलाबी रंग के धागे में पिरोकर यदि पति पत्नी मिलकर शाम के समय प्रदोष काल के समय शिवलिंग पर या भगवान शिव को ओम उमा महेश्वरी नमः इस मंत्र का 11 बार जाप करते हुए यह माला अर्पित करनी चाहिए ऐसा करने से दांपत्य जीवन में मधुरतती है

ओम जय शिव ओंकारा शिव आरती

ओम जय शिव ओंकारा।
प्रभु हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
स्वामी (शिव) पंचानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन, वृषवाहन साजे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


दोभुज चार चतुर्भुज, दशभुज अति सोहे।
स्वामी दशभुज अति सोहे।
तीनो रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


अक्षमाला वनमाला, मुण्डमाला धारी।
स्वामी मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी, कर माला धारी॥
(चन्दन मृगमद सोहे, भाले शशि धारी॥)
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


श्वेतांबर पीतांबर, बाघंबर अंगे।
स्वामी बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुडादिक, भूतादिक संगे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


करमध्येन कमंडलु, चक्र त्रिशूलधारी।
स्वामी चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकर्ता दुखहर्ता, जग-पालन करता॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका।
स्वामी जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर ओम मध्ये, ये तीनों एका॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


काशी में विश्वनाथ विराजत, नन्दो ब्रह्मचारी।
स्वामी नन्दो ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


त्रिगुण स्वामीजी की आरती, जो कोइ नर गावे।
स्वामी जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी , मन वांछित फल पावे॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


ओम जय शिव ओंकारा।
प्रभु हर शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
॥ओम जय शिव ओंकारा॥


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